रायपुर। प्रदेश में विगत दिनों हुए नक्सली हमले में 22 जवान शहीद हो गए है। नक्सली हमला एक बार फिर सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चिंता का विषय बन गया है। चौंकाने वाली बात है कि छत्तीसगढ़ और झारखंड जैसी जगहों के पिछड़े इलाकों से आने वाले कई युवा को भी लुभाने की कोशिशें की जाने लगी हैं। तीन साल पहले हुई एक स्टडी के मुताबिक युवाओं को लुभाने के लिए नक्सली अपनी विचारधारा का नहीं बल्कि अपनी यूनिफॉर्म और अपने हथियारों का प्रयोग करते हैं। साल 2018 में कुछ रिसर्चर्स की तरफ से हुई स्टडी में पता लगा था कि कैसे नक्सली दो हथकंडों को अपनाकर ट्राइबल एरियाज में रहने वाले युवाओं को उनकी जमीन के लड़ने के लिए उकसाते हैं। इस ग्रुप की अगुवाई डॉक्टर गिरीशकांत पांडे ने की थी। डॉक्टर पांडे ने अपनी रिसर्च में ऐसे 25 नक्सलियों का इंटरव्यू किया था जिन्होंने सरेंडर कर दिया था।
ये वो नक्सली थे जिन्होंने 12 से 13 साल के बाद आत्मसमर्पण कर दिया था। चौंकाने वाली बात यह थी कि इन सभी 25 युवाओं को इतने वर्षों में कभी भी नक्सली विचारधारा समझ ही नहीं आई थी। न ही वो ये बता सके थे कि आखिर उन्होंने क्यों इस प्रतिबंधित संगठन का दामन थामा था। बता दें कि डॉक्टर पांडे ने सन् 1990 के शुरुआती दशक में बढ़ते नक्सल चरमपंथ पर पीएचडी की है। इस रिसर्च में यह बात भी सामने आई थी कि करीब 33 फीसदी कैडर्स सरकार की सरेंडर पॉलिसी से प्रभावित हुए थे। वहीं 13 फीसदी ऐसे थे जो अपने सीनियर्स की तरफ से हो रहे शोषण से परेशान थे। रिसर्चर तोरण सिंह ठाकुर ने बताया था कि जिन नक्सलियों ने सरेंडर किया उनके मुताबिक नक्सली साल 2011-2012 से युवाओं को आकर्षित करने और उनकी भर्ती करने में असफल रहे हैं। इस वजह से वो सदस्यों की कमी से जूझ रहे हैं।